अंकित तिवारी, जयपुर। राजस्थान में इस सप्ताह राजनीति पर्दें के पीछे और ब्यूरोक्रेसी कुर्सी के ऊपर नजर आई। बात आई कैन स्पीक प्रॉपरली की हो या महलों की राजनीति के प्यादों के बयान की, जयपुर से बीकानेर फेंके गए ब्यूरोक्रेट की हो या सरकारी टेंडरों में रुचि बढ़ाते मध्यस्थों की। जानिए सत्ता, सीएमओ और सचिवालय के गलियारों की चर्चा, अनकही by Ankit Tiwari में।
बड़े घर का भोज बेकार गया
एक बार फिर सफुगा है बजट पढ़ेगा कौन? व्यर्थ की चर्चा के बीच सिविल लाइंस के बड़े घर में भोज रखा गया। अलग से हुई बैठकी में जिनको आना था वो आए, जिनको देरी से आना था, वो पास ही स्वागत के फूल मालाओं में आनंद खोजते रहे। भोज रखने का असली मकसद था कि केसरिया नमक खा रहे है तो गुणगान करें। राह चलता नेता भी हाथ का थपेड़ा दे रहा, जवाब देने कोई आगे नहीं आ रहा। विधानसभा में आवाज उठे तो सबकी एक साथ। तमाम मंत्र दिए गए कि यह करें, वह करें। मौजूद लोग केवल यह सोच रहे थे कि हमारा मुहं खुलवाकर निकली आग से किसकी रोटी सिकेगी। नतीजा यह रहा कि सदन में फ्रेस्टेशन में कानून गाली दे बैठे। अब गिनती के सर है जो नमक का कर्ज मिठाई की आस में अदा कर रहे है। जिस हिसाब से विपक्ष घेर रहा है लग रहा है बड़े घर का भोज बेकार गया।
आई कैन स्पीक प्रॉपरली
निर्णय मंडली की बैठक के बाद कौन बताएगा, क्या किया। यह हर बैठक के बाद चर्चा में आ ही जाता है। मीडिया के सामने आने वाले सफेदपोश का चयन किसकी सलाह से है, यह जानना आसान है। किसको नहीं भेजना है। इसका एडवाइजर कौन है, यह जनता जानना चाहती है। हनुमानजी के वार पर हुई बैठक में जिस विभाग की सबसे महत्वपूर्ण नीतिगत घोषणाएं हुई, उस विभाग के मंत्री कसी हुई कोटी पहन कर आए। सोचा मौका मिलेगा बताने का कि राठौड़ी में आज क्या झंडे गाड़े। लेकिन ऐनवक्त पर कानून के साथ पॉवर भेज दी गई। सीएमओ की दीवारों ने यह भी सुना कि बोला गया कि मुझे भेज दो “आई कैन स्पीक प्रॉपरली”।
पर्ची मेरे हाथ में नहीं है
जब से पर्ची खोली है, तब से समर्थक कह रहे है कि मौका हाथ से जाने क्यों दिया। मुंहफट नेता भी सलाह दे चुके है पर्ची चबा जानी थी। अब हर महिने जनता के बीच में एक दो दौरे राजनीतिक जमीन के उपजाऊ रखने के लिए हो रहे है। इस बीच में एक समर्थक बोले वंस मोर। अब दिल्ली की मर्जी बखूबी समझ चुकी पॉवरफुल नेता ने साफ कह दिया कि मेरे हाथ में क्या रखा हुआ है। अब समर्थक अलग अलग अर्थ निकाल रहे है कि यह कमजोरी बताई है या समझदारी।
अपना काम बनता
एक साल में सब समझ चुके है कि हवा किस तरफ बह रही है। विधायकों ने साफ तौर पर समझ कि है कि अपना काम बनता, कुछ दिन बाद देखेंगे क्या कहती है जनता। यहीं वजह है कि तबादलों में सिर्फ उनकी सिफारिश कि जो काम के थे। अब जिनके नहीं हुए उनको कहा जा रहा है कि सरकार पर्ची की है।
मेज थपथपाओ, ताली बजाओ
जनपथ पर वास्तु सुधार कर तकनीक के साथ आए नेता माहौल देख रहे थे। राज्यपाल पहली बार सरकार की खूबियों को पर बोल रहे थे। अब बात सत्ता पक्ष की यानि मुखियाजी के ग्रेट फैसलों की थी, तो ताली बजनी चाहिए। सत्ता पक्ष पहले से जानता है कि एक साल में किया क्या क्या है ऐसे में हाथों को आराम दिए हुए थे। यह सन्नाटा तीसरी लाइन में बैठे बड़े बाबू को पसंद नहीं आया। जिन कुर्ते वालों के काम करवाए हुए थे, उनको बार बार इशारा किया कि मेज थपथपाओ ताली बजाओ। जिन्होंने देखा उन्होंने बजा दी बाकि इशारों से कन्नी काट गए।
सूरज की बत्ती किसने बुझाई
बड़े बाबूओं में जिसके पास अर्थ है, उनकी रिकमेंडेशन पर आए यूपीएससी के होनहार का अनर्थ हो गया। अंबेडकर सर्किल से सचिवालय के भीतर लाए गए समर्थक का रवन्ना कट गया। मन से सजाए कमरे से सीधे रसगुल्लों और नमकीन के शहर में पहुंचा दिए गए। लात किसके कहने पर पड़ी यह अब चर्चा में है। उनके ही साथी जानना चाह रहे है कि आते ही ऐसा कौनसा खेल कर दिया जो नजरों में आ गया। खैर एपीओ होने से तो अच्छा ही है।
बड़े बाबू इतनी शांति में
आते ही मातहतों की अटेंडेंस लेने वाले इन दिनों साहित्य सम्मेलनों हाजिरी दर्शा रहे है। नकली पैरों की मजबूती भी जांच रहे है। इनती शांति उनको नहीं पच रही जो इनके बड़े बाबू की धमक को ही देखने के आदी है। अचानक ह्दय परिवर्तन की वजह जानने को सब उत्सुक है। फंतासी वर्ल्ड में यकीं रखने वाले सोच रहे है कि रॉबर्ट क्लाइव अगर बुद्व की राह पर चल पड़े तो परिणाम क्या होंगे।
विश्वासी का विनाश कौन कर रहा है
इस समय पूरा खेल विश्वास का है। मुखिया जी कई मौको पर अकेले पड़ गए। स्वार्थी लोगों की घेरे खड़ी भीड़ में कुछ लोग इनके असल शुभचिंतक है। इसमें आम आदमी के साथ कार्यकर्ता और ब्यूरोक्रेट्स भी है। विश्वासी लोग ज्यों ही मुखियाजी के लिए कुछ करना चाहते है इनको दूर करने कि कोशिशें प्रभावी हो जाती है। विश्वासी का विनाश कौन कर रहा है यह अब तक बाहर नहीं आया है।