अंकित तिवारी, जयपुर। राजस्थान में इस सप्ताह दिल्ली में शिकायत करने वालों का पता लगाने की कोशिशें रही, वहीं तबादला खुलने के बाद विधायक और मंत्रियों में उम्मीद जगी। सरकारी अधिकारी अपनी प्रजेंटेंशन को मजबूत करते दिखे। वहीं कुछ अधिकारी आम जनता के सरकारी कार्यालयों में घंटे तय करके चर्चा में आए। सरहदी इलाकों में सरकार के दौरे ने भी सुर्खियां बटोरी। अनकही में जानिए सत्ता, सीएमओ और सचिवालय के गलियारों की चर्चा।
दिल्ली में शिकायत कौन कर रहा है ?
मरूधरा के कई नेता वीर दिखना चाहते है। लगातार वार अपनों पर ही है। सिविल लाइंस के गलियारों में उनकी सुनवाई नहीं होती तो शिकायत का पर्चा दिल्ली पहुंचा देते है। शिकायतवीरों की संख्या बढ़ने पर अब बड़े घर ने भी कड़ी प्रतिक्रिया करनी प्रारंभ कर दी है। पहले पहल पता नहीं चल रहा था कौन शिकायत कर रहा है, अब अफसरों को नया टॉस्क भी दे दिया है कि कौन थाली में छेद कर रहा है यह पता करना भी जॉब वर्क समझा जाए। कुछ नाम सामने आए उनको समझाया भी गया है। अब यह वीर जंग के लिए नया माध्यम देख रहे है। इसके बाद चिठ्ठी दिल्ली में नंबर टू के पते बेनामी भी पहुंच रही है। हाल ही में आईटी सेल के कार्यकर्ता का भी दावा है कि उन्होंने वाया दौसा सवाईमाधोपुर दिल्ली कुछ सामान भिजवाया है।
किसकी तैयारी करें, सत्र की या शपथ की ?
केसरिया खेमे के कुछ खास विधायक मंत्री बनने से चूक गए। उस समय अधिकतर ने समय का फेर समझा। सोचा वक्त पलट कर आएगा। अब मीडिया ने उपचुनाव जीतते ही कुछ को ईनाम, कईयों को सजा की खबरें रंगीन पन्नों पर सजाई, अरमान जाग उठे। उम्मीद थी विधानसभा में सरकार गाड़ी ओर मंत्री की हैसियत से जाएगें। अधिकतर ने विधानसभा क्षेत्र की बजाय विभाग का रिप्लाई सपनों में सोचना शुरू कर दिया था। साहेब के दिल्ली दौरों ने उम्मीद जगाई थी कि विधानसभा सत्र से पहले शपथ की तैयारी हो जाएगी, लेकिन जिला प्रभारी मंत्रियों की नई सूची जारी होने से असमंजस में आ गए है।
आरसीए के चुनाव में किसकी राठौड़ी ?
क्रिकेट राजनीति से दूर नही है। राजस्थान क्रिकेट एसोसिएशन के चुनाव हमेशा सुर्खियों में होते है। इस बार पद पर कई नेतापुत्रों की निगाहें है। नेता पुत्रों के बहाने सिविल लाइंस का सबसे बड़ा घर भी इस ग्लैमरस कुर्सी पर दबदबा रखना चाहता है। लेकिन केंद्र से राजनीति के गुर सीख चुके नेताजी चुनावी प्रक्रिया को निरपेक्ष भाव से देख रहे है। यह खींचतान दिखाई नहीं दे रही लेकिन है जबरदस्त। इसी सड़क से मिल रही उनको ताकत भी कम असरदार नहीं है। ऐसे में गुगली किसकी चलेगी इस पर कई लोगों की निगाहें है। बोल्ड होकर खुश होने वाले कार्यक्रम कभी दिखाई दे सकते है।
अदाणी पर कैंची की बड़ी वजह कौन ?
भारत में अदाणी को पूरा सपोर्ट बड़े साहेब का है, यह कांग्रेस के युवराज नींद में भी कह सकते है। उसी अदाणी के प्रोजेक्ट पर राजस्थान में अगर छंगाई हो जाए जो चर्चा में आ ही जाता है। मामला ओरण की जमीन से जुड़ा है। प्रगतिशील विधायक के भारी विरोध का असर रहा या बड़ी अदालत के आदेश का, सरकार ने जमीन आवंटन की प्रक्रिया को निरस्त कर दूसरी जमीन देने की तैयारी कर ली है। मसला यह नहीं है चर्चा इस बात की है कि इस बात का निर्णय जयपुर में हुआ या दिल्ली में कि जमीन आवंटन निरस्त कर दिया जाए।
ब्यूरोक्रेट तलाश रहे गुजरात कनेक्शन ?
राजनीति की राह ही नौकरशाह चलते है। जब से राजनीति में कृपा बरसने के मकान का पता बदला है, तब से कुछ ब्यूरोक्रेट भी मरूधरा में पानी की धार को देखते हुए गुजरात कनेक्शन तलाश रहे है। मसला एक अदद पोस्टिंग का है। फिलहाल उनके एक इशारे पर मालदार कुर्सी मिलना बड़ी बात नहीं। यह बात अलग है कि इनके सहारे जो कुर्सी पर आएगा वो केंद्र के गृह क्षेत्र में सहकार भाव से काम नहीं कर पाएगा।
ईमानदारी किसको दिखानी ?
सरकार जहां वोट के लिए और सेवा के लिए आम जनता के दरवाजे पर जा रही है, राजधानी की कृपापात्र अफसर ने दलाली का हवाला देकर दरवाजों पर कुंडी मार दी है। मामला जमीन से जुड़ा है। नए डवलपमेंट के बाद चर्चा यहीं है कि ईमानदारी की मिसाल देने वालों की कलम पहले किन किन पर चल चुकी है यह भी संज्ञान में रहे। रंग के अनुसार कमरों में जाने की इजाजत मिलने से आचरण बदल जाएगा इसकी गुजाइंश सभी को कम लगती है। दरवाजे छुटभैये नेताओं और कार्यकर्ताओं के लिए बंद किए है या पीडित जनता के लिए यह तो समीक्षा बैठक में ही पता लगेगा।
सरहदी जिला रील से नहीं दबंगई से चर्चा में ?
साउथ की फिल्मों के एक्शन चर्चा में रहते है, लेकिन वहां के लोग शांत माने जाते है। सरहदी जिले में अफसरी सीखकर आए थुंगा नगरम से आने वाले शांत अफसर पर संविदाकर्मी भारी पड़ गया। राजनेताओं की चिलम भरकर नौकरी कर रहे कर्मचारी ने ना केवल खरीखोटी सुनाई साथ ही संविदा की नौकरी पर फिर से ज्वाइनिंग ले ली। अब अफसर का मन इस इलाके में नहीं लग रहा है। जयपुर तक इसकी आवाज कलेक्टर नहीं पहुंचने दे रही है।
बड़े बाबू मरूस्थल के दौर पर क्यों गए ?
सोलर में पैसे की पैदावार ने मरूभूमि को सुर्खियों में ला दिया है। छोटा हो या बड़ा हर कोई ठेकेदार बन चुका है। नेतागिरी भी इसके आसपास घुमने लगी है। राइजिंग का सपना भी सौर ऊर्जा से ही रौशन होगा। असल परेशानी अब काम रोकने और घेरने की घटनाओं से आ गई है। सरकार को इससे कोई सरोकार ना हो ऐसा हो नहीं सकता। दिल्ली कब फटकार दे किसको पता। ऐसे में सचिवालय के बड़े बाबू मरूस्थल के दौरे पर रहे तो चर्चा में उठी की दौरा जनता के लिए था या उद्योगपतियों के लिए। अदाणी को मिली ओरण की जमीन का आवंटन निरस्त करना भी इन दिनों हुआ। ऐसे में हर कोई जानना चाहता था कि सरकार के आने की असली वजह क्या है।