सालों का इंतज़ार हुआ ख़त्म, मोदी सरकार ने राजस्थान के इन 2 जिलों को दे दी 333 करोड़ की बड़ी सौगात, जानें पूरी डिटेल

भरतपुर और अलवर के उद्योगों पर एनसीआर के प्रतिबंधों का असर झेलने के बाद, अब एनसीआर प्लानिंग बोर्ड द्वारा 333 करोड़ की राशि स्वीकृत की गई है। इस फंड का उपयोग ट्रोमा केयर नेटवर्क, हेलीपैड, और स्वास्थ्य सेवाओं के विकास में किया जाएगा।

दिल्ली के नजदीक होने के कारण भरतपुर और अलवर जैसे जिले काफी समय से विकास के बजाय प्रतिबंधों का शिकार रहे हैं। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) में शामिल होने के चलते इन जिलों पर कई तरह की बंदिशें लगाई गईं। इन बंदिशों ने न केवल स्थानीय उद्योगों को प्रभावित किया, बल्कि वाहनों की उम्र को भी सीमित कर दिया। भरतपुर और अलवर में ईंट-भट्टों से लेकर तेल उद्योग तक पर इन नियमों का प्रतिकूल असर पड़ा। डीजल वाहनों की आयु 10 साल और पेट्रोल वाहनों की आयु 15 साल तक सीमित कर दी गई, जिससे वाहन मालिकों और उद्योगों को बड़ा नुकसान झेलना पड़ा।

हालांकि, इस बार पहली बार एनसीआर का फायदा इन जिलों को मिलने जा रहा है। एनसीआर प्लानिंग बोर्ड ने हाल ही में 1,000 करोड़ रुपए की राशि स्वीकृत की है, जिसमें से 333 करोड़ रुपए भरतपुर और अलवर के विकास कार्यों के लिए आवंटित किए गए हैं। इस राशि का उपयोग प्रमुख रूप से ट्रोमा केयर नेटवर्क और स्वास्थ्य सेवाओं के सुधार के लिए किया जाएगा।

विकास की दिशा में बड़ा कदम

यह राशि भारत सरकार के वित्त मंत्रालय द्वारा “स्पेशल असिस्टेंस टू स्टेट्स फॉर कैपिटल इन्वेस्टमेंट” योजना के तहत स्वीकृत की गई है। इस योजना के तहत, एनसीआर क्षेत्र में शामिल तीन प्रदेशों – हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राजस्थान को विकास के लिए आर्थिक सहायता प्रदान की गई है। राजस्थान के हिस्से में 333 करोड़ रुपए की राशि आई है, जिसे विशेष रूप से भरतपुर और अलवर जिलों के विकास कार्यों के लिए उपयोग में लाया जाएगा।

एनसीआर प्लानिंग बोर्ड की ओर से इन पैसों का सबसे प्रमुख उपयोग ट्रोमा केयर नेटवर्क को उन्नत करने में किया जाएगा। इसके तहत अस्पतालों में नई सुविधाओं को जोड़ा जाएगा, जिससे आपातकालीन स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता में सुधार आएगा।

ट्रोमा केयर नेटवर्क और स्वास्थ्य सुविधाओं का उन्नयन

स्वीकृत राशि का प्रमुख हिस्सा भरतपुर और अलवर के सरकारी अस्पतालों को उन्नत बनाने पर खर्च किया जाएगा। जिला अस्पतालों में आधुनिक एंबुलेंस सेवाओं को शुरू किया जाएगा, जिससे आपातकालीन मामलों में मरीजों को समय पर उपचार मिल सके। इसके साथ ही जिन अस्पतालों में पहले से हेलीपैड उपलब्ध हैं, उन्हें अपग्रेड किया जाएगा, और जहां हेलीपैड नहीं हैं, वहां द्वितीय चरण में नए हेलीपैड बनाए जाएंगे।

इस योजना के अंतर्गत, एक मोबाइल एप्लिकेशन भी विकसित किया जाएगा, जो लोकेशन के आधार पर लोगों को निकटतम ट्रोमा सेंटर की जानकारी देगा। इससे मरीजों को इमरजेंसी के समय में नजदीकी अस्पताल में जल्द से जल्द पहुंचाने में मदद मिलेगी। इसके अलावा, एडवांस ब्लड बैंक भी स्थापित किए जाएंगे, ताकि गंभीर मरीजों को समय पर खून उपलब्ध कराया जा सके।

भरतपुर के जिला मुख्यालय पर स्थित सरकारी अस्पताल को “फास्ट ट्रैक” अस्पताल के रूप में विकसित किया जाएगा। इसका मतलब है कि यहां पर आपातकालीन चिकित्सा सेवाओं को और तेज और प्रभावी बनाया जाएगा। इसके अतिरिक्त, सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में भी एडवांस लाइफ सपोर्ट सिस्टम और एंबुलेंस की सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएंगी। यह सुनिश्चित किया जाएगा कि ग्रामीण इलाकों में भी आपातकालीन चिकित्सा सुविधाएं आसानी से उपलब्ध हों।

योजना के दूसरे चरण में और विस्तार

एनसीआर योजना का यह पहला चरण है, जिसमें मुख्यत: जिला अस्पतालों और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों पर ध्यान केंद्रित किया गया है। योजना के दूसरे चरण में इस विस्तार को और बढ़ाया जाएगा। इसमें अधिक संख्या में अस्पतालों और स्वास्थ्य केंद्रों को शामिल किया जाएगा और ट्रोमा केयर नेटवर्क को और मजबूत किया जाएगा। इस तरह से यह योजना आने वाले वर्षों में व्यापक स्वास्थ्य सुधार का आधार बनेगी।

एनसीआर की बंदिशों से नुकसान

भरतपुर और अलवर को एनसीआर में शामिल होने के बाद से कई बंदिशों का सामना करना पड़ा है। दिल्ली से मात्र 100 किलोमीटर की दूरी के चलते इन क्षेत्रों में उद्योग-धंधों को पनपने में काफी मुश्किलें आई हैं। अक्टूबर 2023 में दिल्ली से एनसीआर की सीमा को 175 किलोमीटर से घटाकर 100 किलोमीटर कर दिया गया, लेकिन इस पर भी अमल नहीं हो पाया। इसके कारण यहां के करीब 125 ईंट भट्टों को हर साल कुछ महीनों के लिए बंद करना पड़ता है, जिससे मजदूरों और उद्योगपतियों को आर्थिक नुकसान उठाना पड़ता है।

इसके अलावा, तेल उद्योग पर भी इसका विपरीत असर पड़ा है। एनसीआर क्षेत्र में शामिल होने के कारण यहां नए उद्योगों की स्थापना में भी रुकावट आई है। बयाना क्षेत्र में चलने वाले कई क्रशर उद्योग इसी कारण से बंद हो गए। स्थानीय लोग और व्यापारी इस बात से निराश हैं कि एनसीआर की बंदिशों ने यहां के व्यापार और रोज़गार को काफी हद तक प्रभावित किया है।

नए उद्योगों की संभावनाएं

हालांकि एनसीआर के कारण अब तक भरतपुर और अलवर के उद्योगों को नुकसान ही हुआ है, लेकिन अब 333 करोड़ की इस सहायता राशि से उम्मीद है कि यहां पर कुछ नया बदलाव आएगा। विकास योजनाओं के तहत, न केवल स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार होगा, बल्कि इस क्षेत्र में नए उद्योगों और व्यापारिक गतिविधियों की संभावनाएं भी बढ़ेंगी।

यह राशि भरतपुर और अलवर में बुनियादी ढांचे के विकास के साथ-साथ नए उद्योगों को आकर्षित करने में मदद करेगी। इससे स्थानीय लोगों को रोजगार के नए अवसर मिल सकते हैं और लंबे समय से ठप पड़े उद्योगों को फिर से जीवित किया जा सकता है।

एनसीआर क्षेत्र का भविष्य

भरतपुर और अलवर जैसे जिलों को एनसीआर का हिस्सा बनाकर सरकार ने इन क्षेत्रों के विकास की दिशा में एक बड़ा कदम उठाया था। हालांकि, अब तक इन जिलों को केवल प्रतिबंधों का सामना करना पड़ा है, लेकिन अब इस नई योजना से इन क्षेत्रों में सकारात्मक बदलाव देखने को मिलेगा। एनसीआर प्लानिंग बोर्ड की ओर से स्वीकृत 333 करोड़ रुपए की यह राशि यहां के नागरिकों के लिए स्वास्थ्य और बुनियादी सेवाओं के क्षेत्र में एक नई उम्मीद लेकर आई है।

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लेखक परिचय

Dr Sharad Purohit
Dr Sharad Purohithttps://x.com/DrSharadPurohit
शरद पुरोहित एक प्रतिष्ठित पत्रकार हैं, जिन्होंने मीडिया के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। वह हिंदी समाचार चैनल 'Zee News', 'सहारा समय और 'ETV News राजस्थान' में भी वरिष्ठ संवाददाता के रूप में कार्यरत रहे हैं। जयपुर में रहते हुए शरद पुरोहित अपराध पत्रकारिता के क्षेत्र में अपनी विशेष पहचान बनाई और उनकी रिपोर्टिंग ने अपराध जगत से जुड़े कई मामलों पर गहराई से प्रकाश डाला। वह डिजीटल मीडिया के क्षेत्र में भी कुशल माने जाते हैं। उन्होंने डिजिटल मीडिया में अपना महत्वपूर्ण योगदान देते हुए देश का पहला हिंदी ओटीटी न्यूज़ प्लेटफार्म 'The Chowk' की शुरुआत की, जिसमें वह सीईओ की भूमिका निभा रहे हैं। शरद पुरोहित का योगदान न केवल पारंपरिक पत्रकारिता में, बल्कि डिजीटल प्लेटफार्म पर भी अत्यधिक महत्वपूर्ण माना जाता है।
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