राजस्थान पर बढ़ रहा कर्ज का बोझ, बढ़कर हुआ 5,00,000 करोड़ रुपए

अंकित तिवारी, जयपुर। राजस्थान की सरकार कर्ज लेकर विकास करने की तैयारी में है। भाजपा की डबल इंजन सरकार में ही पचास हजार करोड़ रुपए का नया कर्ज पिछले एक वर्ष में लिया जा चुका है। राजस्थान के सरकारी उपक्रमों पर कर्ज का भार बढ़कर पांच लाख करोड़ रुपए को पार कर गया है। अब नया कर्जा अगले 6 वर्षों के लिए लिया गया है, दो बैंकों से भजनलाल सरकार प्रतिवर्ष तीस हजार करोड़ रुपए तक का कर्ज ले सकेंगी।

चिंता में डाल रहा राजस्थान पर बढ़ता कर्ज भार

राजस्थान की सरकार पर कर्ज का भार बेतहाशा बढ़ रहा है। प्रदेश की भजनलाल सरकार ने अपने कार्यकाल के पहले ही वर्ष में पचास हजार करोड़ रुपए का नया लोन लिया है। इसी सप्ताह दो बैंकों से एमओयू कर सालाना तीस हजार करोड़ रुपए का नया कर्ज लेने पर सहमति दर्शाई है। नतीजा यह है कि वर्तमान में लिए गए कर्ज पर 37 हजार करोड़ रुपए से अधिक का ब्याज चुकाना पड़ रहा है। ऐसे में राजस्थान में कर्ज के बढ़ते आंकड़े चिंता में डाल रहे हैं। सरकार को उम्मीद है इंफ्रा, पॉवर और पेयजल परियोजनाओं में कर्ज लेकर किया गया निोश भविष्य में लाभदायी रहेगा।

विकसित राजस्थान का सपना कर्ज से होगा पूरा

वित्त वर्ष में ही सरकार दिसंबर तक करीब 50 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा का कर्ज ले चुकी है। सरकार पर कुल कर्ज का भार पांच लाख करोड़ रुपए के आकड़े को छूने वाला है। पिछले बजट में सरकार ने जो कर्ज के आंकड़े दिए थे उनके अनुसार 31 मार्च 2024 तक ही राजस्थान पर कुल कर्ज लगभग 4 लाख 44 हजार करोड़ रुपए हो गया था।इसके बाद सरकार बोर्ड कॉरपोरेशन से लेकर अलग-अलग संस्थानों के माध्यम से बाजार से भारी कर्ज उठा चुकी है। इस सप्ताह मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा की मौजूदगी में वित्त विभाग ने बैंक ऑफ बड़ौदा तथा बैंक ऑफ महाराष्ट्र से एक एमओयू किया है। जिसके तहत बैंक ऑफ बड़ौदा अगले छह वर्षों यानी 31 मार्च 2030 तक, प्रति वर्ष 20 हजार करोड़ रूपये का ऋण प्रदान करेगा। वहीं बैंक ऑफ महाराष्ट्र भी प्रति वर्ष 10,000 करोड़ रूपये का ऋण उपलब्ध कराएगा। कुल 1 लाख 80 हजार करोड़ रुपए का नया कर्ज लेने के लिए भजनलाल शर्मा सरकार सहमत हो गई है।

ब्याज अदायगी बढ़ाएगी मुसीबत

निर्धारित सीमा से अधिक कर्ज लेने पर ब्याज की दरों में बढ़ोतरी हो जाती है जो राज्य के लिए अल्पकालिक और दीर्धकालिक दोनों में ही बेहद नुकसान करने वाला है। तय सीमा से ज्यादा कर्ज और समय से पहले लेने का दूसरा असर ब्याज दर वृद्धि के साथ-साथ ब्याज दरों की अवधि में भी इजाफा कर देती है। उदाहरण के लिए मानते हैं कि अगर, राजस्थान की दिसंबर तक 46 हजार करोड़ का कर्ज लेने की लिमिट थी, लेकिन इस लिमिट को पार कर 50 हजार करोड़ कर्ज ले लिया गया। इसका एक दुष्प्रभाव यह भी होगा कि आने वाली सरकार को यह राशि खर्च करने के लिए नहीं मिल पाएगी और ब्याज चुकाना पड़ेगा सो अलग।

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लेखक परिचय

Ankit Tiwari
Ankit Tiwarihttp://rajasthanchowk.com/
वर्ष 2003 से पत्रकारिता में। बिजनेस रिपोर्टिंग, उपभोक्ता अधिकारो, आम आदमी से जुड़े पहलुओं, उद्योग, ऑटोमोबाइल, टेलीकॉम, टैक्स, ऊर्जा, बैंकिंग और कृषि सेक्‍टर पर विशेष पकड़।बिजनेस सेमीनार, बड़े आयोजनों सहित बहुजनहिताय के मुद्दों पर रिपोर्टिंग।
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