चौक टीम, जयपुर। राजस्थान विधान सभा अध्यक्ष वासुदेव देवनानी ने कहा है कि राजस्थान विधान सभा सदन में मंगलवार को भी प्रतिपक्ष ने आसन के आदेशों की अवहेलना कर पवित्र सदन की गरिमा को ठेस पहुँचाई। अध्यक्ष वासुदेव देवनानी ने कहा कि उन्होंने आसन से बार-बार निलम्बित सदस्य को सदन से बाहर भेजने के लिए कहा। प्रतिपक्ष ने आसन के निर्देशों को नकारा और निलम्बित सदस्य को सदन में सुरक्षा दी और उसे बाहर नहीं भेजा बल्कि उसे घेर कर सदन में जमे रहे।
अध्यक्ष वासुदेव देवनानी ने नियमों के विपरित प्रतिपक्ष के व्यवहार को लोकतान्त्रिक व्यवस्थाओं और समृद्ध संसदीय परम्पराओं की अवहेलना बताया है। उन्होंने कहा कि उनके द्वारा दस बार नेता प्रतिपक्ष और प्रतिपक्ष के सदस्यों को सदन में बैठने के लिए भी अनुरोध किया गया। अध्यक्ष वासुदेव देवनानी ने प्रतिपक्ष द्वारा आसन के निर्देशों की अवहेलना को बेहद दु:खद बताया है। उन्होंने कहा कि सदन में किसी प्रकार की अप्रिय घटना नहीं घटे इसके लिए उन्होंने निलम्बित सदस्य को सदन से बाहर निकालने के लिए मार्शल भी नहीं बुलाया।
अध्यक्ष वासुदेव देवनानी ने कहा कि जब तक वे आसन पर रहेंगे तब तक वे आसन की मान मर्यादा और गरिमा को बनाये रखेंगे। विधानसभा जैसे पवित्र व गरिमापूर्ण सदन को प्रतिपक्ष के सदस्यों ने अमर्यादित और असंवैधानिक आचरण से ठेस पहुँचाई है, जिसे वे बर्दाश्त नहीं करेंगे। प्रतिपक्ष द्वारा निलम्बित सदस्य का बचाव करना बेहद निन्दनीय व अशोभनीय है।
वासुदेव देवनानी ने कहा कि आसन द्वारा बार-बार प्रतिपक्ष को अनुरोध किये जाने के बाद भी निलम्बित सदस्य को बाहर नहीं भेजा जाना, आसन के निर्णय की सरासर अवहेलना है। श्री देवनानी ने कहा कि उनके अनुरोध को प्रतिपक्ष ने नकारा। अन्तदत: उन्हेंा दु:खी मन से सदस्यध को छ: माह के लिए निलम्बित किये जाने के लिए बाध्य होना पडा। यह निर्णय उनके लिए मानसिक पीडा देने वाला है।
अध्यक्ष ने कहा कि वे चाहते थे कि सोलहवीं विधान सभा का द्वितीय सत्र का अन्तिम दिन पक्ष और प्रतिपक्ष के सदस्यों के मध्य मधुर संवाद के साथ पूरा हो। उन्होंने व्यथित मन से कहा कि सत्र के अन्तिम दिन को मधुरता के साथ प्रतिपक्ष ने पूरा नहीं होने दिया। सत्र में प्रतिपक्ष नेता और प्रतिपक्ष सदस्यों ने अनेक बार असंसदीय व्यवहार किया और गतिरोध बनाया, बाद में अपनी गलती के लिए माफी भी मांगी। उन्हों ने कहा कि प्रतिपक्ष का यह व्यवहार असंवैधानिक और अनैतिक था।
स्पीकर वासुदेव देवनानी ने कहा कि आसन असंसदीय और अशोभनीय आचरण को प्रोत्साहित नहीं कर सकता है। उन्होंने कहा कि भारतीय सभ्यता, संस्कृति और नैतिकता उनके व्यवहार में रची-बसी हुई है। सदन में प्रतिपक्ष की आज भी अमर्यादित और अनैतिकता वाले व्यवहार को देखकर वे दु:खी हुए। अमर्यादित परिस्थिति में वे कठोर और उच्च संसदीय परम्पराओं के निर्वहन और लोकतन्त्र की मजबूती वाला निर्णय लेने में विश्वास रखते है, ताकि शांति, सदभाव, समन्वय और सहिष्णुता का वातावरण बना रहे।
उल्लेखनीय है कि प्रतिपक्ष द्वारा सदन में नियमों व आसन के निर्देशों की अवहेलना करके सदन संचालन में व्यवधान डालना और अपमानजनक भाषा के प्रयोग किये जाने के मामले सोलहवीं विधान सभा के द्वितीय सत्र में अनेक बार हुए, जो आसन द्वारा सदन की समृद्ध परम्पराओं के अनुरूप स्वीकार योग्य नहीं थे। पूर्व में भी प्रतिपक्ष नेता द्वारा आसन को धृतराष्ट्र कहना, विधायक शांति धारिवाल द्वारा सदन में सभापति को धमकाया जाना और अपशब्द के उपयोग किये जाने, विधायक श्रवण कुमार के साथ प्रतिपक्ष सदस्यों द्वारा लगातार नियमों की अवहेलना कर, लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं और संसदीय परम्पराओं को आघात पहुंचाया।