क्या राजस्थान में भी हिट रहेगी मोदी-शाह की जोड़ी?

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राजस्थान में विधानसभा 2018 के चुनाव शुरू होने में अब कुछ ही घंटे बाकी है. नामांकन प्रक्रिया के साथ शुरू हुआ प्रचार कल शाम 5 बजे रुक गया. लगभग 2 हफ्ते चले इस प्रचार में सभी पार्टियों और प्रत्याशियों ने जनता का समर्थन हासिल करने के लिए अपनी पूरी ताकत झौंक दी. प्रत्याशी और उनके प्रचारक अंतिम समय तक जनता से उनके पक्ष में वोट करने की अपील करते हुए दिखे. जहाँ कांग्रेस के लिए राहुल गाँधी, नवजोत सिंह सिद्धू, अशोक गहलोत और सचिन पायलट सहित दिग्गज नेताओं ने प्रचार की कमान संभाली हुई थी, वहीं भाजपा के लिए एक बार फिर सत्ता में आने के लिए अमित शाह, योगी आदित्यनाथ और वसुंधरा राजे सरीखें नेता मैदान पर डटे हुए थे.

 

वहीं प्रचार के अंतिम दिनों में प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी भी भाजपा प्रत्याशियों के समर्थन में जनसभाओं को संबोधित कर रहे थे. इस तरह देखा जाए तो भाजपा ने फिर से सरकार बनाने के लिए अंतिम समय में काफी मेहनत की और अपनी कमियों को दूर करने कि कोशिश करते नजर आई. इसके लिए पीएम मोदी खुद भी प्रचार की तय समय सीमा ख़त्म होने से ठीक पहले भी जनसभा को सम्बोधित कर रहे थे. हालाँकि चुनाव से पहले यह कहा जा रहा था कि राज्य की जनता की नाराजगी मोदी से नहीं बल्कि वसुंधरा राजे से है और अंतिम दो दिनों में पीएम मोदी भी इसी तर्ज पर जनता को सम्बोधित कर रहे थे. ना तो उनकी जनसभा में वसुंधरा उनके साथ दिखी और ना ही उन्होंने अपने सम्बोधन में वसुंधरा का नाम लिया. इसके बजाय उन्होंने अपने भाषण में राहुल गाँधी, कांग्रेस और नेहरु पर निशाना साधा और राज्य सरकार की उपलब्धियों के बजाय केंद्र सरकार की योजनाओं को गिनाया और उनके आधार पर ही जनता से कथित तौर पर समर्थन माँगा.

जहाँ अमित शाह इस चुनाव को 2019 के लोकसभा चुनाव की तैयारियों की तरह देख रहे थे और उसी के आधार पर उन्होंने जनता को सम्बोधित किया. शायद भाजपा के नेता ये जानते है कि अगर इस बार राजस्थान हाथ से गया तो उनके लिए आगामी लोकसभा चुनाव में और भी बड़ी मुसीबत खड़ी हो सकती है लेकिन इसके बावजूद उनके अधिकतर नेता विकास कार्यों के बजाय गोत्र, जाति, धर्म, हिंदुत्व, भारत माता जैसे मुद्दों पर ध्यान दिए हुए थे. शायद वे सभी जनता को ये समझाने की कोशिश कर रहे थे कि राहुल गाँधी एक अच्छे नेता नहीं है.

 

पीएम मोदी ने तो अलवर के मालाखेडा की जनसभा में राहुल गांधी द्वारा जाट नेता कुम्भाराम का नाम गलती से कुम्भकरण पढने को भी नहीं छोड़ा और कहा कि जो नेता अपनी पार्टी के दिग्गज नेताओं का नाम तक नहीं जानते वो सत्ता में आकर कुम्भकरण की तरह सोयेंगे ही.

चुनाव प्रचार में भाजपा के नेताओं का पूरा ध्यान राजे सरकार से हटाकर मोदी सरकार की उपलब्धियों पर दिखा. अब देखना यह है कि क्या पीएम मोदी और अमित शाह द्वारा अंतिम समय में की गई मेहनत से भाजपा एक बार फिर सत्ता में लौटती है या जैसा कि अशोक गहलोत का ‘वसुंधरा की गौरव यात्रा नहीं बल्कि विदाई यात्रा है’ बयान सच होता है. अब इसका फैसला तो जनता 7 दिसम्बर को मतदान केंद्र पर ही करेगी और इसका परिणाम 11 दिसम्बर को सामने आ ही जाएगा.

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