बसपा प्रत्याशी के निधन के बाद फिर नई शुरू हो गई है। इससे पहले भी विधायकों के आकस्मिक निधन हो चुके हैं। राज्य में नई विधानसभा बने 18 साल हो गए हैं। इस दौरान चार सरकार बनी, लेकिन पूरे समय कभी भी 200 विधायक एक साथ नहीं बैठे है। राज्य विधानसभा के ज्योतिनगर में नए भवन की नींव तत्कालीन मुख्यमंत्री भैरोंसिंह शेखावत ने रखी थी। 1999 में यह बनकर तैयार हुआ। उस समय प्रदेश में अशोक गहलोत के नेतृत्व में कांग्रेस सरकार की सरकार थी। उन्होंने ही 2000 में टाउन हॉल से विधानसभा को नए भवन में शिफ्ट किया।
2013-18 के कार्यकाल में भी अजब संयोग बना। नाम वापसी के दौरान चूरू में बसपा प्रत्याशी का निधन हो गया था। इसलिए, 199 सीटों पर चुनाव हुए। करीब 4 महीने बाद हुए लोक सभा चुनाव में चार विधायक सांसद बन गए। सभी सीटों पर उपचुनाव हुए। इस बीच धौलपुर से बसपा विधायक बीएल कुशवाह की विधायकी हत्या के मामले में सजा होने से चली गई। उपचुनाव के बाद वर्ष 2017 में मांडलगढ़ विधायक कीर्ति कुमारी, मुंडावर से विधायक धर्मपाल चौधरी एवं नाथद्वारा विधायक कल्याण सिंह चौहान का निधन हो गया था। हालांकि, इन सीटों पर उपचुनाव नहीं कराए गए। क्योंकि, आम चुनाव को एक साल से भी कम समय रह गया था।
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वर्ष 2008-13 के कार्यकाल के बीच दो मंत्रियों एवं दो विधायकों को जेल की हवा खानी पड़ी थी। दारिया एनकाउंटर मामले में पूर्व मंत्री एवं भाजपा विधायक राजेंद्र राठौड़ को 56 दिन जेल में काटने पड़े। वहीं, वर्ष 2011 में भंवरी देवी अपहरण एवं हत्या के मामले में कांग्रेस सरकार में मंत्री महीपाल मदेरणा व लूणी विधायक मलखान सिंह को जेल जाना पड़ा है। वे अब तक न्यायिक अभिरक्षा में है। उधर, कांग्रेस सरकार में मंत्री रहे बाबूलाल नागर को भी दुष्कर्म के आरोपों के चलते जेल जाना पड़ा था। इस लिहाज से विधानसभा में कभी सारे विधायक एक साथ नहीं बैठे।
कांग्रेस सरकार में वरिष्ठ मंत्री रहे लूणी विधायक राम सिंह विश्नोई का 2004 में और 2005 में डीग विधायक अरूण सिंह का निधन हो गया।
नए भवन में सरकार शिफ्ट होने के बाद ही मंत्री व सागवाड़ा विधायक भीखा भाई व लूणकरणसर विधायक भीमसेन चौधरी का निधन हो गया।