राजस्थान की राजधानी जयपुर के समीप एक ऐसा शिवलिंग है, जिसके पूजनीय से रानी को मिली थी पुत्र रत्न की प्राप्ति, आज लोगों की मन्नते होती है पूरी, जाने नईनाथ धाम के बारे में।
शोरगुल से दूर शांत स्थान
हिन्दू धार्मिक मान्यता के अनुसार राजस्थानी मे एक कहावत हैं, सात वार नौ त्योहार, अर्थात एक सप्ताह मे सात दिन होते हैं। सालाना इन सात दिनों के करीब 9 त्योहार मनाए जाते हैं। और हम बात कर रहें हैं देवों के देव महादेव की, आजहम आपको बताते हैं जीवन की आपा धापी और शोरगुल से दूर नितांत एकांत में स्थित नईनाथ धाम के बारे में, नईनाथ धाम अपनी प्राकृतिक छटा से एकबारगी सबका मन मोह लेता है। जयपुर से करीब 35 किलोमीटर पूर्व की तरफ अरावली पर्वत मालाओं के मध्य नईनाथ धाम मन्दिर स्थिति हैं।
वर्षभर भर मेले जैसा माहौल
नईनाथ धाम में साल भर मेले जैसा माहौल लगा रहता है लेकिन साल भर में यहां दो लक्की मिले आयोजित होते हैं। पहला श्रावण मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को और दूसरा महाशिवरात्रि पर, इन दोनों लकी मेलों में करीब 10 लाख से ज्यादा श्रद्धालु भगवान नई नाथ के दर्शन लाभ प्राप्त करते हैं। साथ ही साथ प्रत्येक महीने की चतुर्दशी तिथि और सोमवार को भी बड़ी तादात में भक्त गण भगवान भोलेनाथ के दर्शन करने यहां पहुंचते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार नई नाथ धाम में जिसने भी मन्नत मांगी वह पूरी होती है, श्रावण मास में तो पूरे महीने भर यहां पर रखने को जगह तक नहीं मिलती। लाखों की तादाद में प्रतिदिन कावड़िया कावड़ यात्रायें लेकर पहुंचते हैं। हजारों शिवभक्त यहां पर कलक दंडवत देते हुए भी नजर आते हैं, श्रावण और भाद्रपद मास में मंदिर में चारों तरफ सैकड़ों की तादाद में पंडित रूद्र पाठ करते हुए भी नजर आते हैं जिसे देखकर यह नजारा काशी से कम नहीं होता, बरसात के समय में नई नाथ का नजारा कुछ अलग ही होता है।
ऐसे पड़ा भगवान भोलेनाथ का नाम नईनाथ
नईनाथ मंदिर का मौजूद स्वरूप का निर्माण बांसखोह के राजा नें करवाया था, सैकड़ों साल पहले बांसखोह के राजा ने शादी की लेकिन कारणवश संतान उत्पन्न होने के कारण दूसरी शादी कर ली लेकिन दूसरी रानी से भी राजा को संतान उत्पन्न नहीं हुई, तो फिर राजा ने तीसरी शादी की। उस समय बांसखोह क्षेत्र मे भगवान भोलेनाथ का मंदिर नहीं था और जौ तीसरे नम्बर की रानी थी वह भगवान भोलेनाथ की उपाशक ( भक्त ) थी और राजा देवी के भक्त थे। रानी नें भगवान भोलेनाथ की पूजा किए बिना भोजन करने से मना कर दिया तो राजा नें रानी से कहा आप देवी की पूजा करके भोजन कर ग्रहण नहीं करेंगी। बात धीरे धीरे ज्यादा बढ़ गई, और राजा नें रानी से कहा अगर तेरे शिवजी इतने ही शक्तिशाली हैं तो लीजिये लेकिन रानी अपनी बात पर क़ायम रही जब तक भगवान भोलेनाथ की पूजा नहीं करेंगी तब तक अन्न व जल बताये उनका मन्दिर कहा हैं, रात्रि मे भगवान भोलेनाथ रानी के स्वपन मे आते हैं और बताते हैं बांसखोह पहाड़ियों के बीच छोटे से मिट्टी के टीले के ऊपर झाड के पेड़ के निचे मेरी मूर्ति हैं, रानी सुबह राजा को रात्रि मे आये सपने के बारे मे बताती हैं, राजा नें रानी के बताये हुए स्थान पर रानी सहित अपने कुछ सैनिक भेजते हैं उस जगह पर भगवान भोलेनाथ की मूर्ति स्थिति थी, जिसकी रानी नें पूजा की और भोलेनाथ के आशीर्वाद से रानी को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई, नई रानी द्वारा भोलेनाथ की पूजा करने पर उक्त मंदिर का नाम नईनाथ अर्थात नई रानी के नाथ पर पड़ा, और आज भी यह मंदिर नई नाथ के नाम से ही जाना जाता है।
देशभर से आते है भक्त
नईनाथ के मंदिर में शीश नवाने के लिए ना केवल बस्सी आसपास के बल्कि जयपु, दौसा सवाई माधोपुर, टोंक, करौली, अलवर, सीकर, भरतपुर, अजमेर, कोटा, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार, दिल्ली से भी बड़ी संख्या में श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं। मोटे आकलन की बात की जाए तो प्रतिवर्ष यहां पर करीब 20 लाख से ज्यादा भक्त भोलेनाथ के दर्शन को यहां आते हैं। यहां लगने वाले सालाना मेले में के समय में भगवान भोलेनाथ के भक्तों की संख्या इतनी अधिक होती है कि उन्हें संभालने के लिए प्रशासन को काफी कसरत करनी पड़ती है।
इको टूरिज्म को बढ़ावा
भगवान भोलेनाथ के दर्शन के साथ साथ इको टूरिज्म को बढ़ावा देने के लिए मुख्यमंत्री अशोक गहलोत द्वारा करीब 2 करोड रुपए की लागत से लव कुश वाटिका का निर्माण भी नई नाथ धाम के जंगलों में करवाया जा रहा है। नई नाथ धाम की पहाड़ी पर वाच टावर लगाए गए हैं। जिससे यहां आने वाले पर्यटक घने जंगल व जंगली पशु पक्षियों को खुले में विचरण करते भी देख सकेंगे , साथ ही कई किलोमीटर लंबा ट्रक भी बनाया गया है, बच्चों को खेलने कूदने के लिए जगह-जगह झूले जैसी व्यवस्था की गई है, साथ ही करीब 100 से अधिक प्रजाति के यहां पर छायादार पेड़ पौधे व फल फूल देने वाले पेड़ पौधे लगाए जा रहे हैं।
नई नाथ धाम मंदिर आस्था के साथ साथ प्रदेश की राजधानी जयपुर में पर्यटन की दृष्टि से भी बहुत ही शानदार रमणीय स्थल है। यह मंदिर आस्था भक्ति श्रद्धा के साथ में पर्यटन की दृष्टि से भी राज्य में नए आयाम स्थापित कर रहा है।