चौक टीम, जयपुर। नागौर और पूरे मारवाड़ की राजनीती बड़ी ही दिलचस्प रही है। इसमें कई दिग्गजों की अपनी भागीदारी रही है जिसमें नाथूराम मिर्धा एक बहुत बड़ा नाम है। नाथूराम मिर्धा प्रदेश और देश के बड़े किसान नेताओं में गिने जाते हैं लेकिन अब नाथूराम मिर्धा की पोती ज्योति मिर्धा की राजनीति हाशिए पर जाती हुई दिख रही है और इन सब का सबसे बड़ा कारण एक ही व्यक्ति हनुमान बेनीवाल है।
दरअसल, हनुमान बेनीवाल बीते तीन लोकसभा चुनाव ज्योति मिर्धा के सामने लड़ते आए हैं और तीनों बार वे अलग-अलग लोगों के सहयोग से या खुद बतौर निर्दलीय प्रत्याशी चुनाव में उतरे हैं। 2014 लोकसभा चुनाव में ज्योति मिर्धा कांग्रेस के टिकट पर, हनुमान बेनीवाल निर्दलीय और सीआर चौधरी भाजपा के टिकट पर नागौर से चुनाव में उतरे जहां ज्योति मिर्धा हार गई, हनुमान बेनीवाल हार गए और सीआर चौधरी जीते। इस चुनाव में कहा जाता है कि हनुमान बेनीवाल नहीं होते तो ज्योति मिर्धा को जीत मिलती।
इसके बाद 2019 के लोकसभा चुनाव में हनुमान बेनीवाल का सहयोग भाजपा ने किया और हनुमान बेनीवाल ने एक बार फिर कांग्रेस की प्रत्याशी ज्योति मिर्धा को हरा दिया।
फिर बारी आई 2024 के लोकसभा चुनाव की जिसमें ज्योति मिर्धा नागौर से भाजपा की प्रत्याशी बनी तो हनुमान बेनीवाल को कांग्रेस ने सहयोग किया और हनुमान बेनीवाल ने तीसरी बार ज्योति मिर्धा को लोकसभा चुनाव में हरा दिया।
एक विधानसभा चुनाव और तीन लोकसभा चुनाव देखें तो ज्योति मिर्धा की यह लगातार चौथी हार है और नाथूराम मिर्धा की राजनीतिक विरासत अब नागौर में खत्म होती सी दिखती है। अब ऐसे क्या विकल्प हैं जो ज्योति मिर्धा के पास अब अपनी राजनीति बचाने के लिए बचे हैं।
- ज्योति मिर्धा कांग्रेस में वापसी करें। नागौर विधानसभा सीट जहां पर इस वक्त हरेंद्र मिर्धा विधायक हैं, अगले चुनाव में उनकी जगह कांग्रेस की टिकट पर उतरे। कारण यह है की उम्र और स्वास्थ्य को देखते हुए यह चुनाव हरेंद्र मिर्धा का आखरी चुनाव देखा जा रहा है।
- ज्योति मिर्धा जाट समाज के नेताओं से और जाट समाज के महानुभावों से यह बात करें कि हनुमान बेनीवाल अब दिल्ली जा चुके हैं। तो क्या नाथूराम मिर्धा की राजनीतिक विरासत खत्म हो जाएगी? क्या नाथूराम मिर्धा की पोती को राजनीति करने का हक नहीं? क्या हनुमान बेनीवाल ही अकेले नागौर की पूरी राजनीति चलाएंगे?
ऐसे में अगर ज्योति मिर्धा सहानुभूति कार्ड खेल कर समाज के नेताओं से गुहार लगाती हैं तो हो सकता है की खींवसर विधानसभा उपचुनाव में भाजपा के टिकट पर वह चुनाव लड़े। किन्तु उसमें जरूरी यह है कि भाजपा उन्हें टिकट देगी या नहीं।
- अगले लोकसभा और विधानसभा चुनाव का इंतज़ार करे और आगामी जीत के लिए बेहतर प्लान बनाए।
- भाजपा में बनी रहें और संगठन में कोई बड़ी जिम्मेदारी संभाले।