डा प्रदीप चतुर्वेदी
हमें आजाद हुए 75 साल हो गए आज यदि हम यह मनन चिंतन करते हैं कि “इन 75 सालों में क्या खोया क्या पाया” तो हमें काफी निराशा हाथ लगती है क्योंकि हमने इतनी लंबी अवधि में सिर्फ खोया ही खोया है, चाहे वह स्वाभिमान, आत्मविश्वास या सम्मान हो या हमारी स्थिति| आजादी की भारी कीमत चुकाने और भूलने और उसके बाद आज प्राप्त उपलब्धि पर गंभीर विचार विमर्श करने की फुर्सत ही किसे है, आज देशवासियों को तो इस बात का भी रंज है कि हमारे देश की उपलब्धियां उपाधि ‘प्रजातंत्र’ के साथ उनका ‘प्रजा’ का नाम क्यों जोड़ा है? क्योंकि आज देश में प्रजातंत्र अर्थात जनता का, जनता द्वारा, और जनता के लिए शासन राहा ही कहां है? आज तो हर कहीं सत्ता के लिए आपाधापी मची है और देश के कर्णधारों द्वारा “400 दिन में पूरा देश नाप लो” के लोकतंत्र के मंच से संदेश दिए जा रहे हैं, आज आजादी के पहले की राजनीति भी कहां रही आज तो राजनीति का एकमात्र उद्देश्य ‘सत्ता प्राप्ति’ ही रह गया है। इसलिए ऐसे राज को क्या प्रजातंत्र कहा जा सकता है?
हमारे पूर्वज शहीदों ने देश की आजादी को लेकर क्या-क्या सपने संजोए थे? और स्वतंत्र भारत को लेकर क्या-क्या कल्पनाएं की थी क्या हम इन 75 सालों में उन सपनों को 1% भी साकार करने के प्रयास कर पाए? क्या आज की सत्ता केंद्रित राजनीति के लिए इतनी बड़ी बड़ी कुर्बानियां दी थी? क्या प्रजातंत्र की लूट देखने के लिए हमारे पूर्वजों ने सर्वोच्च न्योछावर किया था। इस सब के लिए हम स्वयं ही दोषी हैं कोई और नहीं, क्योंकि हम वास्तव में प्रजातंत्र की परिभाषा को ही सही अर्थों में समझ नहीं पाए और स्वयं को इस प्रजातंत्र का मालिक समझ बैठे।
आज गंभीर चिंतन का समय है, क्या आज का यह दिन देखने के लिए हमने अंग्रेजों को भगाकर आजादी हासिल की थी ? क्या हमारे सपनों का भारत यही था? क्या प्रजा की उपेक्षा कर लूटमार का तंत्र स्थापित करना ही हमारा उद्देश्य था हमने कभी इस पर चिंतन मनन ही नहीं किया ? क्या करें…. हमारे पास इस सबके लिए समय ही कहां है? स्वार्थ सिद्धि का जहां बोलबाला हो वहां देश व प्रजा के बारे में चिंतन करने की फुर्सत ही किसके पास ?
आज क्या स्थिति है देश व देशवासियों की ? आज के हमारे ‘भाग्यविधाताओ’ ने कभी इस पर गंभीर चिंतन किया ? आज की राजनीति का उद्देश्य ‘जनसेवा’ रही ही कहां है ? आज तो राजनीति सिर्फ सत्ता पर कब्जा करने के एकमात्र उद्देश्य को लेकर की जा रही है और अपने आप को देश का प्रथम सेवक कहलाने वाले हमारे आधुनिक भाग्य विधाता किस की सेवा में लिप्त है यह किसी से भी छुपा नहीं है? हमारे संविधान ने सत्ता की अवधि 5 साल निर्धारित की उन 5 सालों में से देश व देशवासियों के लिए हमारे आज के भाग्य विधाता कितना समय देते हैं यह क्या किसी से छुपा है झ? आज सत्ता प्राप्ति का एकमात्र उद्देश्य सत्ता की दीर्घ सलामती और स्वार्थ की पूर्ति ही रह गया है, आज की राजनीति से ‘जनसेवा’ का पूरी तरह लोप हो गया है और ‘तंत्र’ पर कब्जा करने वालों ने ‘प्रजा’ को उसके भाग्य भरोसे छोड़ दिया है और जहां तक हमारा अपना सवाल है हम अपनी ही समस्याओं में इतने उलझे हैं कि हमें इन तथ्यों पर विचार करने या आज के भाग्य विधाताओं को सबक सिखाने की फुर्सत ही नहीं है आज की यही स्थिति है और यही स्थिति चलती रही तो हम कितने दिन स्वतंत्र रह पाएंगे कुछ भी कहा नहीं जा सकता ।