7 दिसम्बर को राजस्थान में विधान सभा के चुनाव होने वाले हैं जिसका परिणाम 11 तारीख को घोषित किया जाएगा। आज चुनावों के लिए होने वाले वाले प्रचार-प्रसार का आखरी दिन है जो शाम 5 बजे आचार संहिता लगने के बाद एक महीने से चल रहे प्रचार का सिलसिला थम जाएगा। पिछले एक महीने से राज्य की मुख्य पार्टियां लगातार जोर-शोर से अपनी पार्टी का प्रचार कर रही है। ऐसे में ये निश्चित करना आसान नहीं है कि कौनसी पार्टी सत्ता संभालेंगी। हार जीत के बीच बहुत से फैसले ऐसे भी हैं जो आने वाले 5 सालों का हिसाब एक साथ जनता के सामने रख देंगे। पर इन्ही सभी के साथ बात की जाये कि कौन किन कारणों से जीत सकता है या अगर कोई हारता है तो उसकी हार के पीछे के कारण क्या होंगे।
बात देश की दो बड़ी पार्टियों की ही जाए तो बीजेपी और कांग्रेस दोनों दल के कुछ तथ्य क्या कहते हैं चलिए जानते है उनके बारे में…
बीजेपी
बीजेपी की बात की जाए तो जो पिछले 5 साल का हवाला दे कर वोट मांग रहे हैं, या यूँ कहें की 5 साल राज करने के बाद वसुंधरा फिर से अपनी दावेदारी के साथ जनता के बीच है, पर इस बार कुछ परेशानियों के साथ भी…
ये हो सकते है बीजेपी के हर के कारण
1. राजस्थान विधानसभा चुनाव में बीजेपी के लिए सबसे कमजोर पक्ष वसुंधरा राजे के लिए आम जनता की नाराजगी है। पिछली बार चुनाव जीतने के बाद वसुंधरा बीते 4 सालों में कभी भी जनता के बीच नहीं आई और ना ही कभी उनसे जुड़ने की कोशिश की है। आम दिन हो या कोई खास त्यौहार, पर्व लेकिन वसुंधरा कभी भी जनता के बीच नहीं आई। उन्होंने इन 4 सालों में खास त्यौहार अपने निवास पर नहीं बल्कि धौलपुर में अपने महल में रहकर मनाये । धीरे-धीरे अवधारणा यह बनती चली गयी कि वसुंधरा राजे राज में कोई काम नहीं हो रहा है और वसुंधरा राजे तक लोगों के लिए पहुंचना आसान नहीं है।
2. भाजपा का दूसरा कमजोर पक्ष वसुंधरा राजे और नरेंद्र मोदी के बीच छत्तीस का आंकड़ा भी माना जा रहा है। बीजेपी की सरकार होने के बाद भी वसुंधरा राजे और नरेंद्र मोदी के बीच आपसी मतभेद होने की वजह से वसुंधरा सरकार के कामकाज प्रभावित हुए माने जाते है । इसी वजह से कई बार पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत कहते नजर आएं है कि “वसुंधरा राजे और नरेंद्र मोदी की एक हंसते हुए तस्वीर दिखा दो। इतना ही नहीं अमित शाह के साथ भी वसुंधरा राजे के बीच मतभेद नजर आता है”।
3. पिछले चुनाव में भाजपा की जीत के बाद ही जयपुर में 100 से ज्यादा मंदिर मेट्रो निर्माण के लिए तोड़े गए जिसके बाद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े लोगों ने आवाज उठाई और आंदोलन चलाया। इतना ही नहीं इसके बाद हिंगोनिया गौशाला में सैकड़ों गांव गायों के मरने की घटना घटी जिसकी वजह से वसुंधरा राजे और संघ के बीच मतभेद हुए।
4. वसुंधरा के कार्यकाल में राजस्थान के हाड़ौती में किसानों की खुदकुशी की खबरें सामने आई। रिपोर्ट में दावा किया गया कि 100 से ज्यादा किसानों ने राजस्थान में पहली बार आत्महत्या की है।
बीजेपी के मजबूत पहलू
1. वसुंधरा राजे के मजबूत पहलू की सबसे बड़ी बात है कि वसुंधरा राजे जैसा कद्दावर नेता राजस्थान की राजनीित में नहीं है। जनता से सीधे जुड़ने के कारण ब्यूरोक्रेसी पर वसुंधरा राजे की पकड़ मजबूत बताई जाती है।
2. राजस्थान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लहर भी है। ऐसा भी माना जा रहा है कि बीजेपी को मोदी के नाम पर अच्छे खासे वोट मिल सकते है। टिकट बंटवारे में वसुंधरा, कांग्रेस के नेता अशोक गहलोत और सचिन पायलट पर भारी पड़ी है। टिकट बाँटने में जितने विरोध और बाकियो का सामना कांग्रेस को करना पड़ा उस हिसाब से वसुंधरा राजे का इतना विरोध नहीं हुआ।
3. बीजेपी के पास प्रचार के लिए काफी अच्छे चेहरे है। चुनाव में जीत के लिए सबसे ज्यादा मेहनत राजस्थान में बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने की है। उन्होंने पिछले 1 महीने से दिन में 8 -8 सभाएं भी की हैं। मोदी भी अपनी पूरी टीम के साथ चुनाव प्रचार करते नजर आए है और इस चुनाव प्रसार में योगी भी पीछे नहीं हट रहे है।
कांग्रेस की जीत के पक्ष
1. राजस्थान में कांग्रेस की जीत का सबसे मजबूत पक्ष वसुंधरा राजे के प्रति लोगों में नाराजगी है। लोगो में वसुंधरा राजे की नाराजगी का फायदा कांग्रेस को चुनाव के दौरान मिल सकते है।
2 कांग्रेस के मजबूत पक्ष की बात करें तो सचिन पायलट के रूप में युवा जोश वाला नेता और अशोक गहलोत जैसे अनुभवी नेता है। अशोक गहलोत ने अपने पिछले कार्यकाल में जन कल्याण की बहुत सारी योजनाएं चलाई थी। इन योजनाओं को याद दिला कर कांग्रेस लोगों से वोट मांग रही है। सचिन पायलट का गुर्जर वोट और अशोक गहलोत का माली वोट बैंक भी कांग्रेस के लिए अहम है।
3 बीजेपी सरकार के लिए राजपूतों की भारी नाराजगी भी कांग्रेस के लिए मजबूत पक्ष साबित हो सकता है। जाट शुरूआत से ही कांग्रेस के वोटर रहे हैं।
कांग्रेस की हार की वजह
कांग्रेस का सबसे मजबूत पक्ष ही उनकी सबसे बड़ी कमजोरी भी है। मुख्यमंत्री पद को लेकर सचिन पायलट और अशोक गहलोत में झगड़ा चलता रहा है और इसी ने कांग्रेस को अंदर तक कमजोर कर दिया है। टिकट बंटवारे में दोनों लड़े रहे हैं जिसकी वजह से माना जा रहा है कि कांग्रेस को 20 से 30 सीटों का नुकसान हुआ है। कांग्रेस के पास भाजपा जैसा मजबूत संगठन नही है।
कांग्रेस के पास स्टार प्रचारकों की कमी है। राहुल गांधी के अलावा कांग्रेस के पास उनकी पार्टी के स्टार प्रचारक के रूप में नवजोत सिंह सिद्धू, राज बब्बर ही है। इतना ही नहीं पार्टी के पास पैसे और संसाधनों की भी कमी दिखाई दे रही है।