क्या राजस्थान में एक बार फिर बागियों के दम पर बनेगी सरकार?

राजस्थान में सात दिसम्बर को 15वीं विधानसभा के चुनाव होने जा रहे जिसमें भाजपा व कांग्रेस दोनों पार्टियों को लगता है कि अगर किसी वजह से पूर्ण बहुमत नहीं मिलने पर टिकट नहीं मिलने से नाराज होकर बागी चुनाव लड़ रहे नेताओं के जीतने पर उन्हें आसानी से पार्टी में फिर शामिल कर सरकार बनायी जा सकती है। 2008 में अशोक गहलोत ने भी इसी तरह जोड़-तोड़ कर सरकार बनाई थी जो पूरे पांच साल तक चली भी थी। उससे पहले 1993 में भाजपा नेता भैंरोसिंह शेखावत ने भी बहुमत नहीं मिलने पर निर्दलियों के बल पर पांच साल सरकार चलाई थी।

जीत का गणित –

हालांकि जोड़- तोड़ से बनायी गयी सरकारों को राज्य कि जनता ने मान्यता प्रदान नहीं की थी। 2008 में अशोक गहलोत ने बहुमत नहीं मिलने पर जोड़- तोड़ कर सरकार बनाई तो उन्हें इसका खामियाजा 2013 के चुनाव में भुगतना पड़ा जिसमें कांग्रेस को सिर्फ 21 सीटों पर ही जीत मिली थी जो कि अब तक की सबसे कम थी। वहीं भाजपा ने 163 सीटों पर ऐतिहासिक जीत हासिल की थी. हालाँकि भाजपा को इस बार सत्ता विरोधी माहौल का सामना करना पड़ रहा है।

कुछ समय पहले तो ऐसा लग रहा था कि चुनाव होते ही कांग्रेस की सरकार बन जायेगी। अलवर व अजमेर लोकसभा उपचुनाव में कांग्रेस की जीत ने कांग्रेस के मनोबल को और बढ़ा दिया था। लेकिन कांग्रेस में टिकट वितरण में मचे घमासान ने कांग्रेस को बैकफुट पर धकेल दिया। कांग्रेस में दलबदल कर दूसरी पार्टियों से आये लोगों को टिकट देने से पार्टी में वर्षो से काम कर रहे वफादार कार्यकर्ताओ को निराश किया है। ऊपर से पांच सीट ऐसे सहयोगी दलो के लिये छोड़ दी है।

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चुनाव से पहले बागियों को मनाने का दौर-

इसी का परिणाम है कि आज बड़ी संख्या में कांग्रेस के नेता पार्टी से बगावत कर चुनाव लड़ रहे हैं। कांग्रेस ने अपने 35 नेताओं को बगावत करने पर पार्टी से निष्कासित भी किया है। मगर फिर भी अभी कई नेताओं को मनाया जा रहा है। बागी चुनाव लड़ रहे नेताओं से कांग्रेस के बड़े नेता इस आाशा से लगातार सम्पर्क बनाये हुये हैं कि यदि वे चुनाव जीत जाते हैं व इनके समर्थन की दरकार पड़ती है तो उनको मनाकर समर्थन लिया जा सके।

कांग्रेस की तरह भाजपा भी अपने बागियो से लगातार सम्पर्क बनाये हुये है। हालांकि कांग्रेस के मुकाबले भाजपा में बागी नेताओ की संख्या कम है, क्योंकि भाजपा कई प्रभावशाली बागियों को समय रहते मना कर उनका नामांकन फार्म उठवाने में सफल रही थी। जबकि कांग्रेस अपने बड़े नेताओं में तालमेल की कमी के चलते ऐसा नहीं कर सकी.

तीसरा मोर्चा –

बागियों के अलावा दोनों पार्टियों कि नजर बसपा व हनुमान बेनीवाल की राष्ट्रीय लोकतात्रिक पार्टी से चुनाव लड़ रहे कई जिताऊ उम्मीदवारों पर भी है जिनसे जरूरत पडऩे पर मदद ली जा सके। कुल मिलाकर वर्तमान हालात में प्रदेश में दोनों मुख्य पार्टियों में अगली सरकार बनाने को लेकर मंथन चल रहा है। प्रदेश में अगली सरकार किस पार्टी की बनेगी इस बात का फैसला जनता सात दिसम्बर करेगी लेकिन तब तक सभी दलो के नेता पूरे जोर-शोर से अपनी पार्टी के प्रत्याशियों को जिताने में लगे हुये है।

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