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स्वामी राघवाचार्य महाराज का निधन: राजस्थान में शोक की लहर, मुख्यमंत्री और राज्यपाल ने दी श्रद्धांजलि

स्वामी राघवाचार्य महाराज का आज सुबह दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया। राजस्थान के राज्यपाल और मुख्यमंत्री ने शोक व्यक्त किया। स्वामी राघवाचार्य महाराज का निधन राजस्थान के लिए एक बड़ी क्षति है। उनके अनुयायी और नेता दुखी हैं। उनका अंतिम संस्कार शनिवार को रेवासा धाम में किया जाएगा।

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स्वामी राघवाचार्य महाराज का निधन
रेवासा धाम के पीठाधीश्वर का देवलोकगमन, राजस्थान के राजनीतिक और धार्मिक जगत में शोक

सीकर जिले के रेवासा धाम के पीठाधीश्वर स्वामी राघवाचार्य महाराज का शुक्रवार सुबह दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया। स्वामी जी को सुबह 7 बजे बाथरूम में अचानक दिल का दौरा पड़ा, जिसके बाद उन्हें सीकर के एक अस्पताल में ले जाया गया। डॉक्टरों ने उनके निधन की पुष्टि की। स्वामी जी के देवलोकगमन की सूचना मिलते ही सीकर जिले सहित पूरे प्रदेश में शोक की लहर दौड़ गई।

राजनीतिक और धार्मिक जगत में शोक:

स्वामी राघवाचार्य जी के निधन की खबर से राजस्थान के धार्मिक और राजनीतिक जगत में भी शोक की लहर फैल गई। राज्यपाल हरिभाऊ बागडे और मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने स्वामी जी के निधन पर गहरी संवेदनाएं व्यक्त कीं। राज्यपाल ने अपने शोक संदेश में कहा कि स्वामी राघवाचार्य महाराज का योगदान वेद, संस्कृत, और सनातन संस्कृति के प्रसार में अद्वितीय है। उन्होंने कहा कि स्वामी जी का निधन हमारे समाज के लिए अपूरणीय क्षति है।

मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने स्वामी राघवाचार्य जी को श्रद्धांजलि देते हुए कहा कि उनका जीवन धर्म, अध्यात्म, और समाज सेवा के लिए समर्पित था। उन्होंने कहा, “स्वामी जी का जाना सनातन धर्म के लिए एक अपूरणीय क्षति है। उनकी शिक्षाएं और योगदान सदा हमारे साथ रहेंगे।” मुख्यमंत्री ने ईश्वर से स्वामी जी की आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना की।

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राम जन्मभूमि आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका:

स्वामी राघवाचार्य महाराज का जीवन राम जन्मभूमि आंदोलन से भी गहरे जुड़ा था। वे भगवान श्रीराम के परम भक्त थे और उन्होंने राम मंदिर निर्माण के लिए आंदोलन में सक्रिय भाग लिया था। स्वामी जी ने इस आंदोलन के दौरान कार सेवकों के एक बड़े जत्थे का नेतृत्व किया था और उन्हें जेल भी जाना पड़ा था। उन्होंने जयपुर से राम भक्तों के एक समूह को अयोध्या के लिए रवाना किया, जिन्हें पुलिस ने आगरा की सेंट्रल जेल में बंद कर दिया था। जेल में रहते हुए भी स्वामी जी ने भक्तों के साथ प्रवचन और भजन संध्या का आयोजन किया, जिससे वहां का माहौल धार्मिक और आध्यात्मिक बना रहा।

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स्वामी जी का जीवन और शिक्षा:

राघवाचार्य महाराज का जन्म उत्तर प्रदेश के हमीरपुर जिले के वीर खेड़ा गांव में 8 सितंबर 1952 को हुआ था। वे बचपन से ही धार्मिक प्रवृत्ति के थे और उन्होंने श्रीराम संस्कृत महाविद्यालय, जानकी कुंड, चित्रकूट उत्तर प्रदेश से संस्कृत व्याकरण का अध्ययन किया। इसके बाद वे 1970 से 1981 तक वाराणसी में वेदांत विषय का गहन अध्ययन किया और संपूर्णानंद विश्वविद्यालय से गोल्ड मेडल प्राप्त किया।

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महाराज ने 1983 में जगतगुरु श्री शंकराचार्य महाराज के अधीन विराट शिक्षा प्राप्त की। 1984 में उन्हें रेवासा पीठ का पीठाधीश घोषित किया गया। उन्होंने वेद अध्ययन की परंपरा को पुनर्जीवित किया और रेवासा धाम में वेद विद्यालय एवं संस्कृत विद्यालय की स्थापना की। उनके नेतृत्व में रेवासा धाम वैदिक शिक्षा का एक प्रमुख केंद्र बना।

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रेवासा धाम का महत्व:

रेवासा धाम, राजस्थान के सीकर जिले में स्थित एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल है। इस धाम का निर्माण 1570 में हुआ था और यह वैष्णव संप्रदाय के 12 प्रमुख आचार्य पीठों में से एक है। स्वामी राघवाचार्य महाराज ने इस धाम को वैदिक शिक्षा और संस्कृति के प्रचार-प्रसार का केंद्र बनाया। उनके नेतृत्व में यहां के वेद विद्यालय में हजारों छात्रों ने वैदिक और संस्कृत शिक्षा प्राप्त की। आज उनके शिष्य विभिन्न महत्वपूर्ण संस्थानों में सेवाएं दे रहे हैं, जिनमें भारतीय सेना भी शामिल है।

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गौ सेवा और समाज सेवा में योगदान:

स्वामी राघवाचार्य महाराज ने गौ सेवा और समाज सेवा के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने रेवासा धाम में एक बड़ी गौशाला की स्थापना की, जहां गौवंश के संरक्षण और स्वावलंबन के लिए विभिन्न उपाय किए गए। उन्होंने गौ उत्पादों का निर्माण शुरू किया और गौवंश की देखभाल के लिए समर्पित प्रयास किए। इसके अलावा, स्वामी जी ने राजस्थान संस्कृत अकादमी के अध्यक्ष पद का भी दायित्व संभाला और राज्य में वेदाश्रमों की स्थापना की। उनके प्रयासों से राजस्थान में आज 1000 से अधिक वेदाश्रम संचालित हो रहे हैं।

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अंतिम संस्कार और श्रद्धांजलि:

स्वामी राघवाचार्य महाराज का अंतिम संस्कार शनिवार को रेवासा धाम के बावड़ी प्रांगण में किया जाएगा। उनके अंतिम दर्शन के लिए उनका पार्थिव शरीर रेवासा धाम में रखा गया है, जहां बड़ी संख्या में अनुयायी, संत, महात्मा, और स्थानीय लोग श्रद्धांजलि अर्पित कर रहे हैं। अंतिम संस्कार के लिए देश के विभिन्न हिस्सों से संत-समाज के लोग भी रेवासा धाम पहुंच रहे हैं।

स्वामी जी की वसीयत के अनुसार, वृंदावन के संत राजेंद्रदास देवाचार्य को रेवासा धाम का अगला पीठाधीश नियुक्त किया गया है। इस अवसर पर राज्यसभा सांसद घनश्याम तिवाड़ी ने उनकी वसीयत को पढ़कर सुनाया, जिसमें स्वामी जी ने अपने उत्तराधिकारी के रूप में संत राजेंद्रदास जी को घोषित किया था।

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राम जन्मभूमि आंदोलन का स्मरण:

स्वामी राघवाचार्य महाराज के निधन के बाद, राम जन्मभूमि आंदोलन में उनकी भूमिका को एक बार फिर याद किया जा रहा है। स्वामी जी ने इस आंदोलन में भाग लेते हुए राम भक्तों का नेतृत्व किया और इस दौरान उन्हें जेल भी जाना पड़ा। उन्होंने राम मंदिर निर्माण के लिए भूमि पूजन के समय रेवासा धाम से एक चांदी की ईंट भी भेजी थी, जिस पर 11 लाख बार “राम” नाम लिखा हुआ था। इस ईंट को अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण में शामिल किया गया।

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स्वामी जी का जीवन धार्मिक और आध्यात्मिक साधना का एक उदाहरण था। उन्होंने अपने जीवनकाल में न केवल वैदिक और संस्कृत शिक्षा के प्रसार में योगदान दिया, बल्कि सामाजिक और धार्मिक सुधारों में भी अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनके निधन से न केवल राजस्थान, बल्कि पूरे देश में धार्मिक और सामाजिक क्षेत्र में एक बड़ी क्षति हुई है।

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आध्यात्मिकता और समाज सेवा के प्रति समर्पण:

स्वामी राघवाचार्य जी का जीवन धर्म और समाज सेवा के प्रति समर्पित था। उन्होंने न केवल धार्मिक शिक्षा के क्षेत्र में अद्वितीय योगदान दिया, बल्कि समाज के कमजोर और वंचित वर्गों के उत्थान के लिए भी कार्य किया। वेद, संस्कृत और भारतीय संस्कृति के प्रसार में उनका योगदान सदैव याद किया जाएगा।

स्वामी जी का मानना था कि धर्म और अध्यात्म का वास्तविक उद्देश्य समाज की सेवा करना है। उन्होंने अपने जीवनकाल में इस सिद्धांत को साकार किया और रेवासा धाम को एक ऐसे केंद्र के रूप में स्थापित किया, जहां धर्म और समाज सेवा के कार्य एक साथ किए जा सकें।

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विद्यार्थियों के लिए प्रेरणा:

स्वामी राघवाचार्य महाराज का जीवन और शिक्षाएं आज के विद्यार्थियों के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं। उन्होंने शिक्षा के महत्व को समझा और अपने अनुयायियों को हमेशा इसके प्रति जागरूक किया। स्वामी जी ने कहा था कि शिक्षा केवल पुस्तकों में नहीं होती, बल्कि यह जीवन के हर पहलू में होनी चाहिए। उन्होंने हमेशा नैतिक और धार्मिक शिक्षा के साथ-साथ सामाजिक शिक्षा पर भी जोर दिया।

उनके द्वारा स्थापित वेद विद्यालय और संस्कृत विद्यालय में आज भी उनके सिद्धांतों के आधार पर शिक्षा दी जा रही है। स्वामी जी के निधन के बाद भी उनके विचार और शिक्षाएं उनके अनुयायियों और छात्रों के माध्यम से जीवित रहेंगी।

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विरासत और भविष्य:

स्वामी राघवाचार्य जी का निधन राजस्थान के धार्मिक और सामाजिक क्षेत्र में एक युग का अंत है। उनके द्वारा स्थापित संस्थान और उनके अनुयायी उनकी विरासत को आगे बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध हैं। उनका जीवन और कार्य हमें यह सिखाते हैं कि धर्म और समाज सेवा एक ही सिक्के के दो पहलू हैं, जिन्हें एक साथ चलाने की आवश्यकता है।

स्वामी जी के उत्तराधिकारी संत राजेंद्रदास जी ने कहा कि वे स्वामी जी की शिक्षाओं को आगे बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध हैं और रेवासा धाम को एक धार्मिक और सामाजिक सेवा के केंद्र के रूप में और अधिक विकसित करेंगे। उन्होंने कहा, “स्वामी जी का आशीर्वाद और मार्गदर्शन हमें सदैव मिलता रहेगा और हम उनकी विरासत को आगे बढ़ाने के लिए हर संभव प्रयास करेंगे।”

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